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Actor satish shah passed away - सतीश शाह का निधन हो गया , जानें पूरी कहानी, मौत कैसे हुई ? कब हुई? उम्र क्या था ? k

Satish Shah Biography in Hindi – सतीश शाह की ज़िंदगी, करियर, परिवार और जीवन की कहानी actor satish shah passed away  जाने मशहूर कॉमेडियन एक्टर सतीश शाह जी की पूरी जीवन कहानी – जन्म, पढ़ाई, फिल्मों का सफर, परिवार, पत्नी, बच्चे और उनके शानदार करियर के किस्से    सतीश शाह की जीवन कहानी -  भारतीय फिल्म जगत में अगर किसी ने कॉमेडी को क्लासिक स्टाइल में दिखाया है, तो उनमें सतीश शाह जी (Satish Shah) का नाम सबसे पहले आता है। उनकी हंसी, टाइमिंग और एक्सप्रेशन आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा हैं। आइए जानते हैं उनके पूरे जीवन की कहानी, जो सिनेमा और टीवी दोनों में प्रेरणा का स्रोत है।   जन्म और शुरुआती जीवन -  सतीश शाह जी का जन्म 25 जून 1951 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। वे एक गुजराती परिवार से थे और बचपन से ही अभिनय के शौकीन रहे। उनकी शुरुआती पढ़ाई मुंबई में हुई और आगे जाकर उन्होंने Film and Television Institute of India (FTII, Pune) से एक्टिंग की ट्रेनिंग ली थी| और वही से उन्होंने एक्टिंग सीखा था|   एक्टिंग करियर की शुरुआत-  सतीश शाह जी ने अपने करियर की शुर...

दीपावली का रहस्य – लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा क्यों मनाई जाती है ये पावन रात ?

दीपावली सिर्फ त्योहार नहीं, यह उजाले की जीत का प्रतीक है। जानिए दीपावली का असली रहस्य, महत्व और इसका पौराणिक कथा ।

दीपावली का रहस्य – क्यों मनाई जाती है ये पावन रात?


“दीपावली का रहस्य – उजाले से भरी पावन रात में ज्ञान और प्रेम का दीप जलाइए।”


• दीपावली का रहस्य – क्यों मनाई जाती है ये पावन रात?

भारत में दीपावली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, रोशनी और उम्मीद का प्रतीक है। हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या को जब पूरा देश दीपों से जगमगा उठता है, तब ऐसा लगता है जैसे अंधकार पर उजाले की विजय हो गई हो।


 दीपावली का अर्थ - 

‘दीपावली’ शब्द का अर्थ है – दीपों की पंक्ति। यह त्योहार इस बात का प्रतीक है कि जब जीवन में अंधकार छा जाए, तो ज्ञान और प्रेम का दीप जलाकर सबकुछ रोशन किया जा सकता है।


 पौराणिक कथा -

• हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास के बाद और रावण का वध करके अयोध्या लौटने पर इस दिन दीप जलाए गए थे। तभी से इस दिन को “दीपावली” के रूप में मनाया जाता है।



• इसके अलावा, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है। लक्ष्मीजी धन की देवी हैं और गणेशजी बुद्धि के देवता, इसलिए दोनों की पूजा एक साथ की जाती है।


 धार्मिक और सामाजिक महत्व

दीपावली न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह परिवार और समाज को जोड़ने वाला त्योहार भी है। लोग इस दिन पुराने मनमुटाव भूलकर एक-दूसरे को मिठाइयाँ देते हैं, घर सजाते हैं, और मिलजुलकर खुशी मनाते हैं।


दीपावली का रहस्य

दीपावली हमें सिखाती है कि सच्चा उजाला बाहर नहीं, भीतर होता है। जब हम अपने अंदर की नकारात्मकता, क्रोध, और ईर्ष्या को मिटाकर प्रेम और करुणा का दीप जलाते हैं, तभी असली दीपावली होती है।


•दीपावली क्यों मनाई जाती है इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं 

सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया और खुशियों के दीप जलाए गए तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है लेकिन इसके अलावा भी कई कहानियां हैं जिनके बारे में कम लोग जानते हैं

आज हम दीपावली मनाने के पीछे की कुछ कहानियां जानेंगे -



 श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी यह वह कहानी है जो लगभग सभी भारतीय को पता है । कहा जाता है कि मंथरा की बातों में आकर कैकई ने दशरथ से राम को वनवास भेजने का वचन मांग लिया । इसके बाद श्रीराम को वनवास जाना पड़ा 14 वर्षों का वनवास बिताकर । जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया । तभी से दीपावली मनाई जाती है । रामायण में बताया गया है कि भगवान श्री राम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी । भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी । हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे । तब से दिवाली का यह पर्व अंधकार पर विजय का पर्व बन गया और हर वर्ष मनाया जाने लगा । 


• पांडवों का वनवास 

पांडवों का अपने राज्य लौटना महाभारत काल में कौरवों ने शकुनी मामा की मदद से शतरंज के खेल में पा को हराकर छल पूर्वक उनका सब कुछ ले लिया और उन्हें राज्य छोड़कर 13 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा । कार्तिक अमावस्या को पांच पांडव युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव 13 वर्ष का वनवास पूरा कर अपने राज्य लौटे । उनके लौटने की खुशी में राज्य के लोगों ने दीप जलाए । माना जाता है कि तभी से कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है । 


• मां लक्ष्मी की उत्पत्ति 




 मां लक्ष्मी का अवतार धन की देवी और भगवान विष्णु की अर्धांगिनी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथाओं के अनुसार दानवों ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था । कालांतर में तीनों लोकों में दानवों का अत्याचार बढ़ने लगा और उनका तीनों लोकों में आधिपत्य हो गया । इसके चलते राजा इंद्र का सिंहासन भी छिन गया । इसके बाद घबराए देवता गण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे इस पर भगवान ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत को पीने को कहा । इससे देवता अमर हो जाएंगे और वे दानवों को हराने में सफल होंगे । भगवान विष्णु के कहने पर क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया गया । इसमें 14 रत्नों के साथ ही अमृत और विष भी निकला । समुद्र मंथन के दौरान ही मां लक्ष्मी की भी उत्पत्ति हुई थी । जिसे भगवान विष्णु द्वारा अपनी अर्धांगिनी के रूप में धारण किया गया । दीपावली का त्यौहार हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने की की अमावस्या को मनाया जाता है । कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी जी ने अवतार लिया था । मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है । इसलिए हर घर में दीप जलने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं ।


• श्री कृष्ण और सत्यभामा 




 नरकासुर का वध प्राग ज्योतिष पुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था । जब भगवान विष्णु वराह के रूप में उत्पन्न हुए थे । तब उनके स्पर्श के कारण वह पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था । उसने अपनी शक्ति से इंद्र वरुण अग्नि वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया । वह संतों को भी त्रास देने लगा महिलाओं पर अत्याचार करने लगा । उसने संतों आदि की 16000 स्त्रियों को भी बंदी बना लिया । जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए । लेकिन नर का सुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था । इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया । इंद्र की प्रार्थना स्वीकार करके श्री कृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्राग ज्योतिष पुुंब पहले मुर दैत्य सहित मुर के 6 पुत्र ताम्र ,अंतरिक्ष, श्रवण विभाव, असु ,नब, स्वान और अरुण का संहार किया । मुर दैत्य के वध हो जाने का समाचार सुन नरकासुर अपने अनेक सेनापतियों और दैत्यों की सेना को साथ लेकर युद्ध के लिए निकला । नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था । इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया । और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला । इस प्रकार श्री कृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को आतंक से मुक्ति दिलाई । उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दिए जलाए । तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा ।




तो यह थी दिवाली मनाने के पीछे की कुछ दिलचस्प कहानियां । अगर आप ऐसे ही रोमांचक कहानियां सुनना चाहते हो । तो इस Blog को Like, Share And site  को Follow जरूर करें  । तो दोस्तों जल्द ही मिलते हैं ऐसे ही रोमांचक कहानियों के साथ धन्यवाद।

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